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Wednesday, August 11, 2021

बरसात

आज बरसात हो रही है
बूँदें लगातार बरस रहीं हैं 
मौसम में ठंडक का
एहसास होने लगा है 
ज़मीन पर गिरती बूँदें
एक धुन पिरो रहीं हैं 
जो विशुद्ध कुदरती हैं
पत्तियों पर गिरती 
बूँदों की धुन
दिल को राहत पहुंचाने वाली 
सुकून दे रही हैं
हल्की हल्की हवाएँ भी 
चल रही हैं
जिससे बारिश लहरा रही है 
कभी तेज कभी धीमी हो रही है 
जैसे कोई लहर 
चढ़ती और उतरती है 
जिससे सुकून और भी 
बढ़ता जा रहा है 
इस सुकून से बहुत ही 
नरम से 
सुख का एहसास हो रहा है 
दिल दिमाग जिस्म जेहन 
में ताजगी समा रही है 
दिल कह रहा है 
जब तक ऐसी बारिश हो 
यूँ ही बैठा रहूँ अपने साथ 
आँखे बंद करके 
इस सुकून में जीता रहूँ 



Tuesday, August 3, 2021

💘ज़िन्दगी से मुलाकात

                   ज़िन्दगी से मुलाकात
                         (1)
ज़िंदगी में कुछ सवाल ऐसे होते हैं
ज़वाब मिल जाये तो बवाल होते हैं 

तुम्हें तो तजुर्बा है मेरे हाल का
रुसवाई में बेहाल, हम हर हाल होते हैं 

ज़माना ताने बहुत मारता है 
ग़र जुदा उससे, हमारे खयाल होते हैं 

अगले साल तरक्की जरूर मिलेगी हमें 
यही सोचते हुए ज़ाया, कई साल होते हैं 

लंबी छलांग के लिए थोड़ा पीछे जाओ 
फिर देखो कमाल, धमाल पर धमाल होते हैं 
                                 ( 2) 

मुझसे तेरी मुलाकात 
जब होगी ज़िंदगी 
सिर्फ काम की बात 
तब होगी ज़िंदगी 

पुराने हिसाब किताब 
और कुछ सवाल ज़वाब 
अब आराम से सुन 
ऐ ज़िंदगी मेरे ज़ज्बात 

कभी आधा पेट खाया 
कभी आधी नींद सोया 
सिर्फ़ तेरे लिए... 
तू बिखर न जाये 
तू ठहर न जाये 
चलता रहा चलता रहा 
ताकि तू संवर जाये 

वक़्त के साथ 
मैंने तुझे 
निखारा और संवारा
अब मैं सोउंगा 
और तू 
जागेगी सारी रात 
ऐ ज़िंदगी... 
अब रोज होगी मुलाकात 
और होगी 
थोड़ी दिल कि बात 
बाकी काम की बात 
                          ~Shailendra Kumar Mani 

             







Wednesday, October 23, 2019

💘दोनों खामोश हैं Life poetry

                      Poetry on life 

दोनों खामोश हैं 
और हैं लब सिले  
कुछ मैं ऐसा लिखूं  
टूटे दो दिल मिलें 

जिनकी ज़िंदगी की महफिल  
अब है मर चुकी
कुछ मैं ऐसा लिखूं 
जी उठें महफिलें 

दूरियों की वजह एक ज़िद है  कि 
मैं क्यूं... पहले वो बात करे  
कुछ मैं ऐसा लिखूं 
वो खुद ब खुद आ मिलें  

नफरतों का समंदर 
वो पाट दें प्यार से  
कुछ मैं ऐसा लिखूं 
हो दूर शिकवे गिले  

गौर करिएगा कि ऐसे में गलतियां 
गलतफहमी की वजह से होती हैं 
कुछ मै ऐसा लिखूं 
गलतफहमियां ही न पलें 

इसलिये...... 
भूल कर हर भरम, हर  जखम 
फिज़ूल की हर कसम 
साफ़ दिल से करें 
फिर शुरुआत हम 
रोकता हूँ कलम...
सभी फूलें फलें 
टूटे हर दिल मिलें 
सबके चेहरे खिलें 
जी उठें महफिलें  
                        - Shailendra K Mani 
             Motivational poem image 

Motivational Poem

उसके लिये हम आपस में न लड़ें  
जिसके लिए पाने से ज्यादा 
खोना पड़े 
अपनी करतूतों से हम बाद में 
सिर्फ पछताएंगे 
मगर हश्र और अंजाम से
अगली पीढ़ियों को सदियों
रोना पड़े
हम आपस में न लड़ें... 

मंदिर मस्जिद की लड़ाईयां 
सियासी खुराफाती चाल हैं 
इसमें नहीं फंसना है 
फंस के नहीं मरना है 
न ही तो दुनिया से 
न ही किसी की नजरों में 
आईना देखो तो मुस्कुरा सको 
न कि शर्मिंदा  
होना पड़े 
हम आपस में न लड़ें... 

मजहबी रंजिशों के घाव 
बड़े नासूर हो जाते हैं
मत लड़ना, क्या पता
ज़िन्दगी भर घावों को आसुओं से 
धोना पड़े
हम आपस में न लड़ें... 

पढ़ो लिखो अंबेडकर और कलाम बनों
कई पीढ़ियों तक के लिए पैगाम बनो
रुढ़ियों को पीछे छोड़ो
इंसानियत को आगे लाओ 
मोहब्बत और तहज़ीब की मिसाल बनों 
ताकि आने वाली पीढ़ियों को 
मजहबी रंजिशों का बोझ न 
ढोना पड़े
हम आपस में न लड़ें...
                      - Shailendra K Mani


Motivational Poem 

                   2.  किस बात का इंतजार है

दिल को राहत पहुंचाए 
उस बात का इंतजार है 
तपती दोपहर में 
ठंडी रात का इंतजार है 

सीने की जलन जिस्म ए जलन 
में न बदल जाए 
गलतफहमियां दूर हो
उस मुलाकात का इंतजार है 

छले नहीं कपटे नहीं 
न चलाए धोखे से छुरा 
इंसानियत हो जिसमें 
उस जात का इंतजार है 

ईद में भी दीप जले 
क्रिसमस संग हो होली
युद्ध लफ्ज़ दुनिया से मिटे 
उस हालात का इंतजार है 

लालच और नफरतें लड़ा रही हैं
हमें एक दूसरे से 
अब सोच बदलनी होगी 
आखिर किस बात का इंतजार है
                               - Shailendra K Mani

            3.Poem about inflation 

सब्जी में हौ आग लगी  
कईसे झेली महंगाई हम  

थरिया पूरा भरतइ नइखे 
कब ले आधा खाई हम  

चूल्हा चौका ठंडा पड़ गैं  
कईसे पेट के आग बुझाइ हम 

बटुआ खाली त झोलवउ खाली 
केतना उधारी से खर्चा चलाई हम 

इहीं में तीज त्योहार पड़ल हौ  
कईसे कीनी कपड़ा लत्ता मिठाई हम  

रिस्तेदारन के न्यौतौ करईके बा  
कहाँ से देई झपिया दैजा मुंहदेखाई हम  

जड़वौ त अब गोड़ पसारी  
कईसे बनवाई रजाई हम  

सब हल्ला करिहीं तब सरकार सुनी  
आखिर केतना अकेलइ चेल्लाई हम 
          Poem about inflation image 

                                     - Shailendra K Mani  



हिन्दी ग़ज़ल 'शहर की शाम'

फैला दो पैगाम हमारे शहर में भीषण लगा है जाम हमारे शहर में धूप में हो बारिश सर्दी में चले पंखा   किस्से हैं यूँ तमाम हमारे शहर में माथे में द...